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ढैंचा की खेती: संपूर्ण जानकारी और विधान

ढैंचा की खेती“Organic Farming with Dhaincha: A Green Revolution for Indian Agriculture” 

1. ढैंचा की खेती : एक प्राकृतिक जादू

ढैंचा, जिसे सदाबहार पौधा भी कहा जाता है, एक प्रमुख जैविक खेती कूटीर है जो खासकर जैविक खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हरे खाद को तैयार करने में ढैंचा की खेती का उपयोग किया जाता है, जिससे खेत की उर्वरक शक्ति को बढ़ावा मिलता है।

2. जैविक खाद का निर्माण: ढैंचा की खेती का राज़

  • खेती में हरी खाद का महत्व: ढैंचा की खेती से मिलने वाली हरी खाद, नाइट्रोजन और जीवांश की मात्रा को बढ़ाने में सहायक होती है।
  • ढैंचा की कटाई और जुताई: बारिश के मौसम में सनई, ढैंचा, गावर, गवरी, मूंग और लोबिया जैसी फसलों का इस्तेमाल करके हरी खाद की तैयारी की जाती है। इससे मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक तत्व बनते हैं।
  • पर्यावरण का संरक्षण: ढैंचा की खेती से मिट्टी में पायी जाने वाली उपयोगी सूक्ष्मजीवों की संख्या और उनकी क्रियाशीलता में वृद्धि होती है, जिससे पर्यावरण का संरक्षण होता है।

3. खेती के लाभ: ढैंचा की खेती से हर किसान का लाभ

  • अधिक उत्पादन और कम खर्च: ढैंचा की खेती से 20-25 टन हरी खाद और 85-100 किलो तक नाइट्रोजन मिट्टी को मिलता है, जिससे खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ती है और रासायनिक उर्वरकों पर होने वाला खर्च कम होता है। पंत ढैंचा और हिसार ढैंचा जैसी दो ढैंचा की विशेष किस्में हैं, जिनसे अच्छी गुणवत्ता डेढ़ से दो महीने में मिट्टी को दी जा सकती है.
  • मिट्टी की स्वस्थता: हरी खाद से मिट्टी की उर्वरक क्षमता, अम्लीयता और क्षारीयता में सुधार होता है, जिससे मिट्टी की स्वस्थता बनी रहती है।
  • उच्च गुणवत्ता वाली खेती: जब ढैंचे के पौधे चार से 5 फीट तक ऊँचे हो जाते हैं, तब उन्हें तवे वाले हल से जोड़कर खेत में ही काट दिया जाता है। इस प्रक्रिया से खेत में हरी खाद तैयार होती है। खाद तैयार करने के लिए ढैंचे की कटाई के बाद खेत में चार पांच दिनों के अंतराल पर दो से तीन बार जुताई की जानी चाहिए। ढैंचा की खेती से प्राप्त उत्पादों की उच्च मांग के कारण किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है।

इस प्रकार, ढैंचा की खेती से किसान अधिक उत्पादन और कम खर्च में खेती कर सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है। इसलिए, हर किसान को इस प्राकृतिक जद्दोजहद का लाभ उठाना चाहिए।

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