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कृषि में महिलाएं: खेतों की अनसुनी नायिकाएं

कृषि में महिलाएं: खेतों की अनसुनी नायिकाएं

जब हम किसान की छवि अपनी आंखों में बनाते हैं, तो अक्सर एक पुरुष की तस्वीर उभरती है – सिर पर पगड़ी, हाथ में हल, और तपती धूप में काम करता हुआ। लेकिन क्या आपने कभी उन हाथों को देखा है जो हर सुबह सूरज उगने से पहले खेतों की ओर बढ़ते हैं, जो बीज बोते हैं, सब्ज़ियां उगाते हैं, जानवरों को चारा देते हैं और दिनभर अपने परिवार का पेट भरने के लिए बिना थके मेहनत करते हैं?

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं – कृषि क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की। वो महिलाएं जो खेतों की अनसुनी नायिकाएं हैं, लेकिन जिनकी मेहनत को अक्सर पहचान नहीं मिलती।


भारत की रीढ़: खेत में काम करती महिलाएं

भारत में लगभग 70% ग्रामीण महिलाएं किसी न किसी रूप में खेती से जुड़ी हुई हैं। वे बीज बोने से लेकर फसल काटने, मवेशियों की देखभाल, खाद-गोबर बनाने और अनाज संभालने तक हर काम करती हैं। कई बार तो जब पुरुष शहरों में मजदूरी करने जाते हैं, तब पूरा खेत महिलाओं के भरोसे ही चलता है।

लेकिन दुःख की बात ये है कि अधिकांश महिलाओं के नाम पर न ज़मीन होती है, न बैंक लोन की सुविधा, और न ही उन्हें किसान माना जाता है – बस ‘मज़दूर’ कहकर बात खत्म कर दी जाती है।


महिला किसानों की असली ताकत

    1. धैर्य और सहनशक्ति: महिलाएं लगातार घंटों तक खेत में काम करती हैं, चाहे बारिश हो या धूप।

    2. कुशल प्रबंधक: वे घर और खेत दोनों संभालती हैं, बजट में सामंजस्य बैठाना और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करना उन्हें बखूबी आता है।

    3. पारंपरिक ज्ञान: कई महिलाओं को बीजों, मौसम और मिट्टी के बारे में पीढ़ियों से चला आ रहा ज्ञान होता है।

    4. सहभागिता की भावना: वे अक्सर सामूहिक रूप से काम करना पसंद करती हैं – जैसे स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाना, जिससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी सुधरती है।


चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं

  • ज़मीन पर अधिकार नहीं

  • कृषि तकनीक और ट्रेनिंग की कमी

  • वित्तीय सहायता और बैंकिंग से दूरी

  • सामाजिक मान्यता की कमी

इन समस्याओं का समाधान करना अब वक्त की मांग है।


आगे का रास्ता: महिला किसान भी किसान हैं

सरकार और समाज दोनों को मिलकर यह मानना होगा कि महिला किसान सिर्फ “मददगार” नहीं, बल्कि मुख्य किसान हैं।

  • महिला किसान कार्ड जारी होना चाहिए

  • प्रशिक्षण और टेक्नोलॉजी तक उनकी पहुंच होनी चाहिए

  • जमीन और लोन पर उनका हक सुनिश्चित किया जाए

  • महिलाओं के समूहों को बढ़ावा दिया जाए


नारी शक्ति खेत में भी कम नहीं

महिलाएं खेत की मिट्टी से सिर्फ अनाज नहीं, बल्कि आशा, परिश्रम और भविष्य उगाती हैं। वे अपने पसीने से सिर्फ अन्न नहीं, बल्कि देश की आत्मनिर्भरता की नींव रखती हैं।

अब वक्त है कि हम उनके योगदान को सिर्फ महसूस ही नहीं, बल्कि मान्यता भी दें।


सलाम है उन हर उस औरत को, जो बिना थके, बिना रुके खेतों में पसीना बहाती है – वो सिर्फ़ एक “किसान की पत्नी” नहीं, खुद भी एक किसान है।


क्या आपके गांव में भी ऐसी महिलाएं हैं जो खेतों की असली नायिकाएं हैं?

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