पुनरुत्पादक खेती: ज़मीन को चंगा करते हुए खाना उगाना
लेखक: सागर चौधरी
जब भी मैं खेत की मिट्टी को हाथ में लेता हूं, एक बात साफ़ महसूस होती है — ज़मीन सिर्फ उत्पादन का जरिया नहीं है, यह एक जीवित इकाई है। वह सांस लेती है, थकती है, और अगर हम ध्यान न दें, तो बीमार भी पड़ती है।
आज के दौर में जहां खेती में रसायनों और मशीनों का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है, एक आवाज़ धीरे-धीरे फिर से उठ रही है — पुनरुत्पादक खेती (Regenerative Agriculture) की। यह सिर्फ एक तकनीक नहीं है, यह एक सोच है — “हम जमीन से उतना ही लें, जितना हम उसे वापस दे सकें।”
🌱 पुनरुत्पादक खेती क्या है?
पुनरुत्पादक खेती का मतलब है ऐसी खेती करना जो:
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मिट्टी को ज़्यादा उपजाऊ बनाए,
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कार्बन को ज़मीन में ही रोके (climate change को कम करे),
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जैव विविधता को बढ़ाए,
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किसानों की आत्मनिर्भरता बढ़ाए।
यह खेती केवल उत्पादन नहीं, पुनरुद्धार (healing) पर ज़ोर देती है।
🌾 मुख्य सिद्धांत
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मिट्टी को ढका रखना (Cover Cropping):
हर वक्त खेत को कुछ न कुछ उगाकर ढका रखना ताकि मिट्टी न सूखे, न कटे। -
जुताई कम करना (Minimal Tillage):
ज्यादा जुताई मिट्टी की संरचना और सूक्ष्म जीवों को नष्ट करती है। कम से कम जुताई करें। -
जैविक सामग्री जोड़ना (Compost, Green Manure):
खाद, गोबर, जीवामृत, वर्मी कम्पोस्ट – मिट्टी में जीवन लौटाते हैं। -
फसल चक्र और मिश्रित खेती (Crop Rotation & Diversity):
एक ही फसल बार-बार उगाने से मिट्टी थक जाती है। फसल बदलते रहें, साथ में कई फसलें उगाएं। -
पशु-पक्षियों को खेती में शामिल करना (Integrating Livestock):
गाय, बकरी, मुर्गियां खेत के साथ प्राकृतिक संतुलन बनाती हैं।
🌍 यह खेती सिर्फ खेत की नहीं, धरती की सेहत की भी बात करती है
आज जलवायु परिवर्तन, सूखा, बाढ़ और मिट्टी की खराब हालत जैसी समस्याएं खेती को चुनौती दे रही हैं।
पुनरुत्पादक खेती:
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ज़्यादा कार्बन ज़मीन में रोकती है
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पानी रोकने की क्षमता बढ़ाती है
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पौधों की पोषण शक्ति बढ़ाती है
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कीटनाशकों की जरूरत कम करती है
यानि यह खेती सिर्फ पर्यावरण नहीं, आपकी पॉकेट और प्लेट — दोनों को फायदा पहुंचाती है।
👨🌾 भारत में क्या संभव है?
बिलकुल! भारत की पारंपरिक खेती खुद में पुनरुत्पादक थी — बैलों से हल, फसल चक्र, पंचगव्य, मल्चिंग, देसी बीज, तालाब, चारागाह… आज हमें इन्हीं पुरानी चीजों को नई समझ के साथ अपनाने की जरूरत है।
कुछ उदाहरण:
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आंध्र प्रदेश में ZBNF (Zero Budget Natural Farming)
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महाराष्ट्र में किसानों के स्वयंसेवी फार्मिंग ग्रुप्स
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उत्तराखंड में मल्चिंग और जंगल मॉडल खेती
💡 क्या आप एक किसान हैं या बनने की सोच रहे हैं?
तो शुरुआत ऐसे करें:
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मिट्टी की जांच कराएं – यह जानना जरूरी है कि ज़मीन में क्या है और क्या नहीं।
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रासायनिक इनपुट धीरे-धीरे कम करें – एकदम न हटाएं, लेकिन विकल्प तैयार रखें।
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जीवामृत, गोमूत्र, वर्मी कम्पोस्ट से शुरुआत करें
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स्थानीय समुदाय और विशेषज्ञों से जुड़ें
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सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ उठाएं (जैसे कि PKVY – Paramparagat Krishi Vikas Yojana)
✨ अंतिम विचार
खेती एक पेशा नहीं, एक सेवा है — धरती की, समाज की, और आने वाली पीढ़ियों की।
पुनरुत्पादक खेती हमें यही सिखाती है कि हम अपने खेत से सिर्फ अनाज नहीं, जीवन उगाएं।
तो आइए, हम खेती को सिर्फ लाभ का सौदा न मानें, बल्कि एक जिम्मेदारी और रिश्ते की तरह निभाएं।
आप क्या सोचते हैं? क्या आप भी मिट्टी से रिश्ता बनाना चाहते हैं जो सिर्फ उपज न दे, बल्कि ऊर्जा और सम्मान भी लौटाए?
अगर आप इस विषय में गहराई से जानकारी चाहते हैं या एक प्रैक्टिकल गाइड की ज़रूरत है, तो मुझे बताइए — मैं आपके साथ हूँ।